"लोग हंस की प्रशंसा करते हैं और मुझे काला कहते हैं। मैं तो हंस से भी तेज उड़ सकता हूं। क्यों न मैं उसे उड़ने के मुकाबले के लिए ललकारु और उसे हरा दूँ। तब लोग मेरी प्रशंसा करेंगे और उसका अनादर।" यह सोचकर कौए ने हंस को समुद्र के बीच में स्थित एक द्वीप तक एक साथ उड़ने के लिए ललकारा। हंस तैयार नहीं हुआ किंतु कौए ने जिद ने छोड़ी। दोनों ने उड़ना शुरू किया। आरंभ में कौआ अत्यंत तेज गति से उड़ता रहा। कौआ शीघ्र थक गया और नीचे गिरने लगा। हंस को उस पर दया आई। उसने कौए को अपने पंखों पर बैठाकर द्वीप तक सुरक्षित पहुंचा दिया।कौआ अपने किए पर बहुत लज्जित हुआ।
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