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शिक्षा मधुबन(विद्यालय) में माली(शिक्षक) नन्हें पौधे(विद्यार्थी) को खाद-पानी(शिक्षा) दे कर एक सुगंधित,मनमोहक और फलदार वृक्ष(काबिल इंसान) बनाता है।

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GSM TEACHER - अबूझमाड़ में वानर सेना का संचालन करने वाले मोटर साइकिल गुरुजी Devendra Dewangan


वानर सेना:---
      
  वानर सेना का गठन का ख्याल उस समय आया जब मैं अपने विद्यालय के बच्चों को पढ़ाई में किस प्रकार उनका ध्यान आकर्षित विद्यालय की ओर करू। ताकि उनका ध्यान पढ़ाई की ओर आकर्षित हो इसके लिए सबसे जरूरी किसी भी शिक्षक के लिए होता है कि उसकी विद्यार्थी नियमित रूप से विद्यालय आए जबकि मेरे साथ कुछ उल्टा ही हो रहा था मेरे विद्यार्थी नियमित रूप से विद्यालय नहीं आते थे। बात उस दिन की है जब 2014- 15 में एक बच्चे के प्रवेश के लिए उसके पालक उसे पकड़कर मेरे स्कूल पहुंचे वह बालक जब विद्यालय में आया तो सहमा और डरा हुआ दिखाई दे रहा था क्योंकि उसे अपने स्थानीय बोली गोंडी के सिवाय उसे किसी भी अन्य बोली या भाषा के बारे में जानकारी नहीं था इसी कारण से वह बच्चा बहुत ही सहमा और डरा हुआ अपने आप में महसूस कर रहा था लेकिन जब उसका नाम और अन्य चीज मैंने लिखना प्रारंभ किया और उसके कुछ देर बाद बच्चा बैठा हुआ था जब पिताजी उसे छोड़कर घर जाने के लिए निकले तो वह बच्चा डरा हुआ चुपचाप बैठा हुआ था

 लेकिन मेरे द्वारा जब उसे एक चॉकलेट दिया और उसके साथ मैंने मित्रतावत बात करना प्रारंभ किया तो वह बच्चा मेरे भाषा को तो नहीं समझा लेकिन मेरे मनोभावों को वह समझ चुका था और जान चुका था कि यही मेरे पढ़ाने वाले शिक्षक हैं जब मैं उसे अगले दिन फिर मेरे पास बुला कर उसे चॉकलेट दिया तो वह बड़े आदर भाव से मुझे इशारा में नमस्ते किया तो मैं समझ गया कि यह बच्चा बहुत ही जल्द मुझसे बात करने के लिए तैयार हो जाएगा और मैंने उसे जब भी समय मिलता था उसे उसे बुलाकर बात करता था धीरे-धीरे वह मेरी बातों को समझने लगा और मुझसे उसका लगाव बढ़ता गया फिर मैंने कोशिश किया कि अब सही समय आ गया है कि इसे अब कुछ सीखा जाए मैंने शुरुआत तौर पर हिंदी वर्णमाला के स्वरों को लिखने के लिए दिया जब बच्चा उसे लिखकर लिखकर दिखा तो मुझे बहुत आश्चर्य हुआ क्योंकि अधिकतर वर्णों को वहां गलत लिखा था 

लेकिन दो वर्ण को वह सही लिख पाया फिर मैंने उसे प्यार से समझाया और बताया कि इस प्रकार लिखा जाता है तो वह बच्चा एक-दो दिन में ही सीख गया और उसके बाद मैंने उसे निरंतर पढ़ाना प्रारंभ किया बच्चा में पढ़ने की ललक बहुत ज्यादा था और वह जब भी उसे समय मिलता था वह शांत नहीं बैठता था और वह कुछ ना कुछ लिखने गणित के सवाल बनाने  में हमेशा व्यस्त रहता था लेकिन अक्टूबर 2015 में मैंने एक दिन एक बच्चे को बुलाने के लिए कक्षा पांचवी के लड़के को बोला कि बेटा तुम जाओ और इसे बुला कर लेकर आओ अचानक मुझे आवाज सुनाई दिया कि सर मैं बुलाने जाऊंगा तो मुझे आश्चर्य हुआ यह छोटा सा बच्चा अपने  से मुझे बोल रहा है कि मैं बुलाने जाऊंगा मैंने बहुत सोचा फिर हां कहना पड़ा क्योंकि वह बच्चा अपने स्वयं से लल्लाहित होकर अपने से बड़े क्लास के बच्चों को  बुलाकर लाने के लिए स्वयं से तैयार है ऐसे में इसे रोकना गलत बात होगा

 फिर भी मेरे दिमाग में कई प्रकार के सवाल उत्पन्न हुई क्योंकि जंगली और पहाड़ी रास्ता होने के कारण कई प्रकार के जहरीले सर्पो का हमेशा इस ग्राम में डर बना हुआ रहता है ऐसे में मैंने देखते हुए यह निर्णय लिया कि इस बच्चे के साथ किसी  बड़े बच्चे को भेजा जाए ताकि दोनों जाकर उस बच्चे को विद्यालय में बुलाकर लाए क्योंकि वह बच्चा लगातार दो दिन तक विद्यालय नहीं आया था ऐसे में अकेले शिक्षक होने के कारण उस समय मैं विद्यालय से उसके घर तक जाने में असमर्थ था मैंने दोनों बच्चे को उस बच्चे को बुलाने के लिए भेज दिया उसके पश्चात जब उस बच्चे को चिरंजीव बजनाथ गोटा पांचवी के बच्चे जो बच्चा लगातार अनुपस्थित था

 उसे लेकर आए ।तो मेरे मन में जब मैं विद्यालय से घर वापस आ रहा था तो सोचने में मजबूर होना पड़ा क्योंकि मेरे विद्यालय में अक्टूबर-नवंबर के समय खेती कार्य में व्यस्त होने के कारण पालक गण अपने बच्चों को भी कृषि कार्य में व्यस्त करते हैं और बच्चे विद्यालय में कम आते हैं ऐसी स्थिति में क्या करूं यह मेरे लिए सोचनीय विषय था क्योंकि धान कटाई प्रारंभ होने और महुआ बिन्ने के कार्यों में बच्चे इतने ज्यादा व्यस्त रहते हैं कि विद्यालय की ओर मुड़कर नहीं देखते ऐसे में क्या किया जाए यह बहुत ही जटिल समस्या ग्रामीण क्षेत्रों में देखी जाती है क्योंकि पालकों की का आय का साधन कोई दूसरा नहीं है खेती एवं वन उपज के सिवाय।

दूसरे दिन चिंतन मनन करने के पश्चात मेरे दिमाग में यह आया की चिरंजीव रजऊ वड़डे जब भी स्कूल में खेलता कुदता था हमेशा वह बंदरों के समान हरकत करता था यही हरकत देख कर मेरे मन में यह विचार आया कि क्यों ना  एक नया नाम देकर अपने स्कूल की अनुपस्थित बच्चों को मुख्यधारा में जोड़ा जाए फिर मैंने विस्तार से एक योजना बनाया इस योजना के तहत हम बच्चों को किस प्रकार उनके अध्ययन और विद्यालय में कैसे जोड़े
 
   वानर सेना का निर्माण
मैंने दूसरे दिन ही वानर सेना का निर्माण कर अध्यक्ष के रूप में कक्षा पहली में अध्ययन कर रहे हैं एक छोटे से बालक कि कंधों में यह भार रखकर मैंने कार्य प्रारंभ किया और इस कार्य में मैंने बहुत प्रयासों के द्वारा आज मेरे विद्यालय में 100% उपस्थिति हमेशा दर्ज रहती है क्योंकि यह वानर सेना के द्वारा बच्चों का उपस्थिति दिनोंदिन वृद्धि होता गया और आज की स्थिति में यह वानर सेना जिला और राज्य लेवल तक अपनी पहचान बना चुका है

अध्यक्ष के रूप में एक छोटे से कक्षा पहली पढ़ने वाले बालक की ऊपर मैंने अपना पूरा उम्मीद उस बच्चे के सहारे लगा दिया और कार्य करना प्रारंभ किया इस कार्य में स्कूल के सभी बच्चे को अलग-अलग प्रभार दिया गया वह बच्चा को जब मैंने बताया कि तू स्कूल का अध्यक्ष है तो उसे समझ में कुछ भी नहीं आया क्योंकि अध्यक्ष क्या होता है?  उन्हें नहीं मालूम, लेकिन अति संवेदनशील क्षेत्र और नक्सलाइट पीड़ित क्षेत्र होने के कारण उनको मालूम था कि कमांडर किसे कहते हैं ।और कमांडर का क्या काम है क्योंकि गांव में हमेशा नक्सलाइटों (नक्सलवादी)का आना जाना रहता था ऐसे में उस बच्चे के दिलों दिमाग में यह बैठ गया कि मैं कमांडर हूं इसी वजह से वह बच्चा प्रतिदिन समय से पूर्व 9:00 बजे के आसपास विद्यालय के सामने खड़ा रहता था और अपने बस्ता को दरवाजा के पास छोड़कर वह बच्चा अगल बगल के घरों में जाकर दूसरे अन्य बच्चों को बुलाने के लिए खड़ा रहता था और वह बच्चा जब तक अन्य बच्चों को बुला कर नहीं लाता तब तक उस घर में ही बैठे रहता था 

यदि बच्चा कोई बीमार है तो वह उस बच्चे को छोड़कर दूसरे घर के बच्चों के पास चला जाता था और उन्हें तैयार कर उनके तैयार होते तक वह वहीं पर बैठकर जब वह तैयार होकर बस्ता पकड़ लेते थे तो उनके साथ वहां विद्यालय पहुंच जाता था इसी प्रकार धीरे-धीरे वह सभी बच्चों को स्कूल की मुख्यधारा की ओर चिरंजीव रजऊ वडे जोड़ने लगा इस कार्य में उस बच्चे का योगदान बहुत ही ज्यादा है और वह बच्चा आज कक्षा पांचवी का सबसे होशियार बच्चा है क्योंकि उसे एक बार बताने की देरी रहता है वह बच्चा बहुत जल्द समझ जाता है पढ़ाई में थोड़े पिछड़े होने का कारण वहां की परिस्थिति और गांव के वातावरण पर भी निर्भर करता है  क्योंकि बहुत ज्यादा दुरस्त बीहड़ जंगलों के बीच में यह विद्यालय है यहां पर किसी भी प्रकार की अन्य कोई सुविधा उपलब्ध नहीं है ना ही इतने वर्षों तक विद्युत व्यवस्था अभी तक नहीं पहुंच पाई है मात्र खड़े हुए खमबे हैं, कई सालों से पड़ा हुआ है अभी पिछले वर्ष लाइट कनेक्शन दिया गया लेकिन वह भी कोई काम का नहीं है हमेशा महीनों महीनों तक खराब पड़ा हुआ रहता है

रजऊ के द्वारा यह कार्य नहीं कि वह मात्र बच्चों को बुलाने का कार्य करता है बल्कि वह यह कार्य करता है जो अन्य बच्चों के लिए सोचने और एक आदर्श का काम है क्योंकि वह स्वयं जाकर बच्चों को अपने स्थानीय बोली गोंडी में समझाता है तथा यदि बच्चे नहीं मानते या किसी खेल में व्यस्त हैं और विद्यालय आने के लिए तैयार नहीं होते हैं तो वह बालक उनकी पालकों को गोंडी में समझाता है और स्कूल आने के लिए बच्चों को प्रेरित करता है यदि बच्चा उस दिन विद्यालय नहीं आऊंगा आज मेरा काम है या घर से जंगल की ओर भाग जाता है तो वह यही नहीं रुकता बल्कि उसके मां-बाप को विद्यालय में साथ में लेकर आता है अगर मां-बाप आने के लिए तैयार नहीं होता है तो वह बच्चा 2 घंटा 3 घंटा तक उसी घर में बैठे रहता है तो पालकों की मजबूरी हो जाती है कि विद्यालय तक जाएं और शिक्षक को पूरा बात बताएं इस प्रकार से कार्य एक छोटे से बच्चा ग्राम कोडोली नरिया में करता है 

और उस बच्चे के कार्य के कारण आज विद्यालय की उपस्थिति 100% बनी हुई है कई बार संकुल समन्वयक महोदय के द्वारा स्कूल का भ्रमण किया जाता है और हमेशा  100% बच्चे की उपस्थिति रहती है यह देखकर संकुल समन्वयक श्री अजय डेहरिया जी के द्वारा मेरे विद्यालय के बच्चों के पढ़ाई रहन-सहन और उपस्थिति के बारे में हमेशा सराहना किया जाता है और मेरे द्वारा अपने अगल-बगल के शिक्षकों को कभी-कभी माह में आमंत्रित किया जाता है और उन्हें एक अधिकारी के रुप में बुलाया जाता है ताकि बच्चों से जो भी प्रश्न हैं पूछ सकें ।और मेरा यह मकसद है कि बच्चों के अंदर जो डर बना हुआ रहता है क्योंकि अधिकतर जब हमारे अधिकारी वर्ग आते हैं तो बच्चे से प्रश्न पूछते हैं उस समय बच्चा जानते हुए भी नहीं बता पाता तो एक शिक्षक का दर्द उस समय बहुत दुखदाई होता है क्योंकि इतने प्रयास करने के बाद भी बच्चा जानते हुए भी अपने डर और भय की वजह से सामने वाले अधिकारियों को नहीं बता पाते।

 वानर सेनाके प्रमुख के रूप में चिरंजीव रजऊ द्वारा विद्यालय के अनेक कार्यों में हमेशा भाग लेते रहता है और सबसे अच्छा करने की उसके मन में हमेशा बना हुआ रहता है और उसके विचारों के माध्यम से अनेक प्रकार के कार्यों को उसके मन में कर दिखाने की शक्ति निहित है वह अपने कार्यों के कारण विद्यालय और ग्राम में अलग रूप में उसे देखा जा सकता है।

 



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