नाम- प्रशांत कुमार शर्मा
पद- सहायक शिक्षक (LB)
शाला-शास प्रा शा कँवरपारा (एडुकला)
विकासखण्ड- धरमजयगढ़ जिला-रायगढ छ ग
पता- ग्राम कुडेकेला, तह धरमजयगढ़, जिला रायगढ छ ग
कार्य- अंग्रेजी शिक्षण, कबाड़ से जुगाड़ और डी आई वाई के लिए विशेष रूप से चर्चित होना। अंग्रेजी और डी आई वाई पर उनके द्वारा किए गए कार्य और निर्मित वीडियो सोशल मीडिया पर प्रशंसित और चर्चित रहे।
विद्यालय में उपलब्ध राशि और स्वयं के व्यय से अधिकतम ऐसे टीएलएम और परीक्षा का प्रयोग जो विभागीय प्रशिक्षणों में सिखाये, बताए जाते हैं।) स्कूल में डीआईवाई और कबाड़ से जुगाड़ के माध्यम से भी शिक्षा को रुचिकर बनाकर प्रस्तुत किया जा रहा है, बच्चे स्वयं अलग-अलग प्रकार की सामग्री बनाकर सीखते हैं।
बच्चों के शिक्षण और सीखने के स्तर में व्यापक परिवर्तन देखा जा सकता है।
अपनी 100% ऊर्जा को बच्चों के हित मे लगाना और सृजनात्मक क्षमता को शिक्षा का आधार बनाना ही कार्यशैली का मूलमंत्र है।
साहित्य के क्षेत्र में भी अग्रणी
कला कौशल संस्थान में प्रथम पुरस्कार।
अहिल्या सृजन सम्मान
विविध सम्मेलनों में भागीदारी।
विविध पत्र पत्रिकाओं में कई रचनाएँ प्रकाशित।
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भारत का साहित्य
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भारत का साहित्य धन्य है, जग को शुचिता का अवदान।
दया धर्म और मानवता का, शब्द शब्द में रखा विधान ।।
मगन कबीरा, रानी मीरा, और तुलसी अवधूत यहाँ।
स्वर्गिक धरा बनाने की, चिर परंपरा के दूत यहाँ।
गूंजें बनकर भाव रिचाऐं आदर्शों का घोष सदा।
योग भोग दोनों को जीतें, इसी राष्ट्र के पूत यहाँ।
यही धरा और यही सन्तुलन, भारत की शाश्वत पहचान।
भारत का साहित्य धन्य ---------
दया धर्म और मानवता ----------
होता है साहित्य सुधा से, मानव मूल्यों का सुविकास।
ज्यों वृष्टि पाकर ही उभरे, तृषित धरा की भीनी वास।
ज्ञान और वैविध्य भरा है, अमर हमारी थाती में।
शिवोअहम आदर्श हमारा, और षड्दर्शन विश्वास में।
दास नहीं हैं हम वैभव के, त्याग का करते हैं गुणगान।
भारत का साहित्य धन्य ----------
दया धर्म और मानवता -----------
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प्रशांत कुमार धरमजयगढ़
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भारत वंदन
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(1)
हे भारत हे भारतभूमि, हे भारत के
निःसीम गगन;
हम नतमस्तक हो करते हैं, चरणों मे तुम्हारे ही वंदन।
(2)
कोई देव नहीं कोई पूज्य नहीं, केवल तुम हो आराध्य सदा;
वह धर्म नहीं कर्तव्य नहीं, हित जिससे तुम्हारा ना हो सधा।
तुम दीपक हो, तुम चंदन हो तुम ही ईश्वर तुम ही पूजन ।
हे भारत हे ---------------
हम नतमस्तक -----------
(3)
हम प्राण समर्पित करते हैं, यदि रण के क्षण आ जाते हैं कभी;
हो शांतिकाल तो सेवा में, प्रस्तुत हैं सेवा में सुख त्याग सभी।
हो सीमाएँ या कर्मक्षेत्र, अर्पित हैं
हमारा तनमनधन।
हे भारत हे भारत ---------
हम नतमस्तक -------------
(4)
ये झीलें सागर ये नादियां, वो शिखर
जो छूते हैं अम्बर;
ये हरियाली और ये गलियाँ, जैसे आया हो स्वर्ग उतर।
साकार हुआ तुम में ईश्वर, अब ना देखें कुछ और नयन।
हे भारत हे -------------
हम नतमस्तक ----------
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स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक
बधाइयां
प्रशांत कुमार
धरमजयगढ़
छत्तीसगढ़
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बहुत ही सुंदर
ReplyDeleteइतने सुदूर आदिवासी अँचल में अवस्थित ग्रामीण अँचल के बच्चों की ऐसी हिंदी,,,और उस हिंदी से अँग्रेजी ट्राँसलेशन🖕 अविश्वसनीय ही लगेगा जब तक व्यक्ति उक्त लिंक में वह वीडियो न देख ले।।।
अत्यंत साधुवाद
ऐसे सत्प्रयासों.पर।।।
सही मायनों में इसे ही
हार्दिक अभिनंदन शब्द से नवाजा जाना चाहिए।।
आगे बढ़ते रहें हमेशा
इन शुभकामनाओं के साथ
जय हिंद जय भारत
बहुत ही उत्कृष्ट कार्य शर्मा सर जी। इसी प्रकार राष्ट्र की सेवा करते रहें। आप सफलता की ऊँचाइयों को छुएं, इसी भावना के साथ आपके उज्ज्वल भविष्य की कामना करता हूँ।
ReplyDelete~पंकज साहू