परिचय
नाम -- डिजेन्द्र कुर्रे "कोहिनूर"
पिता -- श्री गणेश राम कुर्रे
माता -- श्रीमती फुलेश्वरी कुर्रे
शिक्षा -- बीएससी(बायो)एम .ए.हिंदी ,संस्कृत,
समाजशास्त्र ,d.Ed ,कंप्यूटर पीजीडीसीए
व्यवसाय -- शिक्षक
जन्मतिथि -- 5 सितंबर 1984
प्रकाशित रचनाएं -- बापू कल आज और कल(साझा संग्रह),चाँद के पार,चमकते सितारे,कोरोना वायरस,रंग दे बसंती
साइंस वाणी पत्रिका, छ ग जनादेश अखबार, छ ग शब्द आदि कई पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित।
सम्मान -- 1. राष्ट्रीय कवि चौपाल कोटा राजस्थान प्रथम द्वितीय तृतीय 2019।
2. श्रेष्ठ सृजन रचनाकार का सम्मान।
3. बिलासा साहित्य सम्मान ।
4. कला कौशल साहित्य सम्मान।
5. विचार सृजन सम्मान 2019।
6. अंबेडकर शिक्षा क्रांति अवार्ड।
7. छत्तीसगढ़ गौरव अलंकरण अवार्ड 2019
8. मुख्यमंत्री गौरव अलंकरण अवार्ड 2019
पता -- ग्राम पीपरभावना, पोस्ट- धनगांव,तहसील-बिलाईगढ़, जिला- बलौदाबाजार ,छत्तीसगढ़
पिन - 493559
मोबाइल नंबर - 8120587822
डिजेन्द्र कुर्रे का निवास पीपरभौना बलौदाबाजार छत्तीसगढ़ राज्य में स्थित है ।साहित्यिक उपनाम "कोहिनूर" है ।इनकी जन्म तिथि 5 सितंबर 1984 एवं जन्म स्थान भटगांव छत्तीसगढ़ है ।डिजेन्द्र कुर्रे की शिक्षा बीएससी( बायो ),एम. ए .संस्कृत, समाजशास्त्र, हिंदी साहित्य है ।आपका कार्यक्षेत्र बतौर शिक्षक के रूप में कार्य कर रहे हैं ।आपकी लेखन विधा कविता, हायकू,कहानी ,मुक्तक ,गजल ,गीत आदि है। आपका कार्य कार्य क्षेत्र शिक्षण रहा है ।सामाजिक गतिविधियों के अंतर्गत योग कराटे एवं कई साहित्यिक संस्थाओं में भी पद पदाधिकारी हैं । डिजेन्द्र कुर्रे जी के काव्य संग्रह, साइंस वाणी पत्रिका एवं कई पत्र-पत्रिकाओं में इनकी रचना प्रकाशित है। विशेष उपलब्धि में छत्तीसगढ़ गौरव अवार्ड गृह मंत्री के हाथ सम्मानित होने सौभाग्य मिला है।इसके अलावा मुख्यमंत्री गौरव अलंकरण अवार्ड शिक्षा के क्षेत्र उत्कृष्ट योगदान हेतु मिला है।राष्ट्रीय कवि चौपाल कोटा राजस्थान में प्रथम ,द्वितीय स्थान रहा।कला कौशल साहित्य संगम में साहित्य श्री सम्मान से नवाजा गया है।इसके अलावा विचार सृजन सम्मान,अम्बेडकर शिक्षा क्रांति अवार्ड,उत्कृष्ट शिक्षक सम्मान एवं कई मंचो से सम्मानित किए गए। डिजेन्द्र कुर्रे जी के लेखन का मुख्य उद्देश्य समाज में फैली कुरीतियां, आडंबर, गरीबी, नशा पान, अशिक्षा आदि से रूबरू कराकर समाज को जागृत करना है।
मुक्तक - तिरंगा
★★★★★★★★★★★★
हिमशिखरों से बहकर निकली,
पतित पावनी गंगा हैं।
नील गगन में करलव करते,
दल में उड़े विहंगा हैं।
जो भारत की परिपाटी को,
धारण करके उड़ता हैं।
सबके दिलों में ओज जगाता,
अपना पुण्य तिरंगा हैं।
★★★★★★★★★★★
रघुवर रहबर की धरती में,
पावन प्रेम बहाता हैं।
देख जिसे उत्साह हृदय में,
हम सबके भर जाता है।
जयकारों के शुभ गुंजन से,
मन रोमांचित होता हैं।
पुण्य तिरंगा जब जब नभ में,
लहर लहर लहराता है।
★★★★★★★★★★★
जिसमे गंध समाहित नित हैं,
केशर वाली घाटी की।
गाथाएँ जिसमे मिलती है,
पुज्य सभी परिपाटी की।
जिस पर गर्व सदा होता है,
हम सब भारतवासी को।
पुण्य तिरंगा शान है अपनी,
इस भारत की माटी की।
★★★★★★★★★★★
रचनाकार-डिजेन्द्र कुर्रे "कोहिनूर"
शासकीय पूर्व माध्यमिक शाला पुरुषोत्तमपुर विकासखंड बसना जिला महासमुंद छत्तीसगढ़
बहुत बहुत बधाई सर
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