सिकंदर की भेंट एक संत से हुई। संत एक खुरदरी घास की चटाई पर बैठा धूप सेंक रहा था। सिकंदर उसके सामने खड़ा हो गया और सोचने लगा कि संत उसे प्रणाम करेगा, पर उसने ऐसा नहीं किया। इसके बदले उसने कहा, "कृपया एक और को खड़े हो जाओ, धूप को मुझ तक आने दो।" सिकंदर ने गुस्से से पूछा, "जानते हो मैं कौन हूं?" संत ने कोई जवाब नहीं दिया। "मैं एक सम्राट हूं-सिकंदर महान।" उसने कहा। "सम्राट! तुम! नहीं, तुम नहीं हो", संत ने कहा। "हां, मैं हूं", सिकंदर बोला, "मैंने आधी दुनिया को जीत लिया है।" इस पर संत ने शांतिपूर्वक कहा, "सम्राट तुम्हारी तरह बेचैन होकर नहीं घूमा करते। जाओ, लोगों के दिलों पर प्यार से विजय पाओ।" सिकंदर ने प्रणाम किया और चुपचाप चला गया।
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