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शिक्षा मधुबन(विद्यालय) में माली(शिक्षक) नन्हें पौधे(विद्यार्थी) को खाद-पानी(शिक्षा) दे कर एक सुगंधित,मनमोहक और फलदार वृक्ष(काबिल इंसान) बनाता है।

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चौंक – चौराहों पर शिविर लगाकर आनलाईन नहीं जुड़ पाने वाले बच्चों की तकनीकी समस्याओं को दूर किया , स्पॉट में ही क्लास शेड्यूल बनाकर जुड़ने की प्रक्रिया का प्रशिक्षण


शिक्षा मधुबन के सितारे

       

परिचयनाम - विजय कुमार साहूपद  - सहायक शिक्षकशाला- शासकीय प्राथमिक शाला पिरदा (कोरासी), संकुल केन्द्र- तुलसी,विकासखंड- आरंग, जिला -रायपुर

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उद्देश्य :-      🟣 बच्चों के रूचि के अनुरूप प्रतिभा को अवसर प्रदान करना । 🟢 उनके सृजन क्षमता का विकास करना।🟡 विद्यालय के प्रति सकारात्मक सोंच विकसित करना।🔴 व्यक्तित्व विकास के लिए अवसर प्रदान करना।
बच्चे अत्यंत उत्साही एवं सृजनशील होते हैं, उनके अन्दर अनेक प्रतिभा छुपे होते हैं। उन्हें उनके रूचि के अनुसार अवसर मिलते ही वे चहक उठते हैं और अपने प्रतिभा को दिखाने के लिए पूरे तन-मन से जुड़ जाते हैं। इससे उनके आत्मविश्वास में वृद्धि होती है, अक्सर यह देखा जाता है कि तीज - त्योहारों के मौसम में बच्चे अलग मूड में रहते हैं ऐसे अवसरों पर विद्यालय के वातावरण को खास और रूचि पूर्ण बनाने के लिए मैने विभिन्न प्रकार के प्रतियोगिताओं का आयोजन करने की योजना बनाई जैसे :-छत्तीसगढ़ अवकाश 2021 की सूची   राखी के अवसर पर – राखी बनाओ ईनाम पाओ।
तीजा पोला के अवसर पर – मेहँदी प्रतियोगिता.नवरात्री के अवसर पर – रंगोली प्रतियोगिता

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इसके अलावा अनेक वैश्विक समस्याओं पर आधारित सामाजिक जागरूकता जैसे-कि  जल, पर्यावरण, ऊर्जा संरक्षण, आदि के लिए चित्रकलाप्रतियोगिता का आयोजन करते हैं। जिसमें बच्चे अत्यंत उत्साह पूर्वक अपनी सहभागिता निभाते हैं।
शिक्षण में नवीन तकनीकों का उपयोग कर अधिगम को बेहतर बनाने का प्रयास
प्रायः देखा जाता है कि बच्चे को सीखने की क्रिया में गणित और विज्ञान जटिल, तथा इतिहास जैसे विषय उबाऊ, बोझिल और निरस लगते हैं. जिसके कारण वे कक्षा में अपना ध्यान अधिक देर तक केन्द्रित नहीं रख पाते हैं। इसके लिए मैंने शिक्षण वातावरण को रुचिपूर्ण और सीखने समझने की क्रिया को सुगम बनाने के लिए सहायक सामग्री के रूप में सूचना क्रांति नवीन तकनीकों का उपयोंग करके देखा। मैंने लैपटॉप एवं मोबाइल के द्वारा इन्टरनेट/ यू- ट्यूब से विज्ञान, इतिहास , गणित , के अलावा कक्षा 1 से 8 तक के विभिन्न प्रकार के शिक्षण वस्तुओं का रोचक प्रेजेंटेशन के माध्यम से बच्चों को सुगमता उपलब्ध कराते हुए सीखने और समझने की क्रिया को रोचक, आनंददायक एवं तनाव रहित बनाने का प्रयास किया । जटिल एवं उबाऊ विषय-वस्तु की प्रस्तुतीकरण रोचक होने से बच्चे अपना ध्यान अधिक देर तक शिक्षण के मूल पर केन्द्रित रख पाते हैं इस प्रकार से मैंने अपने शिक्षण उद्देश्यों को पूरा करते हुए बच्चों की समझ विकसित करने के लिए एक बेहतर सुविधा दाता की भूमिका निभाने का प्रयास किया।
बालिका की संकल्पना को साकार करने के लिए मैने किया एक छोटा-सा प्रयास छत्तीसगढ़ अवकाश 2021 की सूची ( दृष्टिबाधित व्यक्तियों के लिए सांकेतिक छड़ी की संकल्पना )
शिक्षा सत्र 2019 – 20 में मानव संसाधन एवं विकास मंत्रालय द्वारा इंस्पायर्ड अवार्ड के लिए प्रत्येक स्कूलों से आईडिया आमंत्रित किया गया था। जिसमें हमारे विद्यालय से कु. धनेश्वरी घृतलहरे कक्षा आठवी के मन में उसके पास – पड़ोस अथवा घर – परिवार में तकलीफ उठा रहे दृष्टिबाधित व्यक्तियों के लिए इलेक्ट्रोनिक सांकेतिक छड़ी की कल्पना उठी जिसे हम लोगों ने इंस्पायर्ड अवार्ड के लिए पंजीयन  किया था। बच्ची की संकल्पना को मूर्त रूप देने के साथ मॉडल को संभाग स्तरीय प्रदर्शनी में शामिल करने के लिए बालिका को दस हजार की राशी भी मिली थी। बालिका के संकल्पना को साकार करने केलिए तकनीकी जानकर लोगों की तलाश कर उनके मार्ग दर्शन में उक्त मशीन को बनाया और मैंने स्वयं छड़ी को डिज़ाइन किया।  दिनांक 13 व 14 जनवरी 2020 को मैंने और श्री एस. आर. साहू सर (प्रधान पाठक MS पिरदा) ने बालिका को रेयोन इंटरनेशनल स्कूल रायपुर के प्रदर्शनी में शामिल कराया और एक सुविधा दाता की जिम्मेदारी को निभाने का एक छोटा सा प्रयास किया...

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शालेय पत्रिका “किलकारी”
मेरा था सपना ! पत्रिका हो विद्यालय का अपना.प्रायः हम सभी अपने स्कूलों / कक्षाओं में बच्चों के लेख, कविता , कहानी, चित्रकारी आदि को संकलित कर ड्राइंग शीट में चिपकाकर पत्रिका बनाते हैं और बच्चों के लिए कक्षा में प्रदर्शन के लिए लगा देते हैं। यह हमारे शालेय गतिविधि का हिस्सा है। शालेय पत्रिका का विचार मेरे मन आज से 5 – 6 वर्ष पहले आया था । चूँकि हमारे शालाओं में इसके लिए कोई फण्ड नहीं होता है, इसके अलावा इस विषय पर मुझे कोई आईडिया भी नहीं था, लेकिन मन में यह विचार चलता रहता था, कि हमारे स्कूल का भी कोई पत्रिका हो। वैसे किसी भी संस्था की पत्रिका उसकी उपलब्धियों का दस्तावेज़ होता है, जब बच्चे पत्रिका में अपनेफोटो /लेख /चित्रकारी आदि देखते हैं तो शाला की प्रत्येक गतिविधि में पूरी लगन से सहभागी बनने के लिए प्रेरित भी होते हैं। इसके अलावा पालकों को बच्चों की अभिरुचि से अवगत कराने का माध्यम भी बनता है। वे पत्रिका में अपने बच्चों की गतिविधियों का फोटो देख गौरान्वित होते है, इस तरह से शिक्षकों और पालकों के मध्य विश्वास के रिश्ते मजबूत होते हैं।किलकारी पीडीएफ़ फार्मेटपत्रिका के बनाने और प्रकाशन तक का सफ़र

मेरे पास बच्चों की विभिन्न गतिविधियों के विगत 6 -7 वर्षों के फोटोग्राफ रखे हुए थे। जिसे मैं एल्बम के रूप में निकालना चाहता था। लेकिन जब मै स्कूल की बच्ची की मॉडल को जनवरी 2020 इंस्पायर अवार्ड में शामिल होने के लिए प्रेजेंटेशन तैयार कर डिजिटल प्रिंटिंग के लिए गया तो वहां पत्रिका प्रिंटिंग से सम्बंधित प्रक्रिया और बजट की भी जानकारी हुई। उसी दिन मुझे पूरा विश्वास हो गया की अब मै भी अपने स्कूल के लिए पत्रिका बनवा सकता हूँ। चूँकि हमारा प्राथमिक और पूर्व माध्यमिक शाला एक ही परिसर में संचालित होता है और दोनों ही स्कूलों के शिक्षक एक परिवार की तरह ही रहते हैं, कुछ दिनों पश्चात मैंने दोनों शाला के प्रधानपाठक एवं सभी शिक्षक साथियों के साथ चर्चा की और उसी दिन से तैयारी करना शुरू किया।  इसके लिए मैंने बच्चों को उनके रूचि अनुरूप मौलिक लेख, कहानी – किस्से, कविता, चुटकुला, सुविचार, सामान्य ज्ञान इत्यादि तैयार करने के लिए प्रेरित किया।छत्तीसगढ़ अवकाश 2021 की सूची अड़चने (कोरोना की साया)  पत्रिका को पूरी करने में मुझे बहुत सी दिक्कतें आई क्योंकि कोरोना के कारण स्कूलें बंद हो चुकी थी। और कुछ ही बच्चों की रचनाएँ मेरे पास थी। अधिक से अधिक बच्चों की रचनायें एकत्रित करने के लिए गाँव के चौक चौराहे में बच्चों को बुलाकर मोबाईल नं. मंगाए और वाट्स एप्प ग्रुप बनाये जिसका उपयोग  हमारे द्वारा ऑनलाइन शिक्षण एवं आवश्यक दिशा निर्देश/ जानकारी बच्चों तक पहुँचाने के लिए भी किया जाता है। बच्चों की रचनाएँ वाट्स एप्प से मंगाए जरुरत पड़ने पर गली मोहल्लों में जाकर भी एकत्रित किया।टंकण, पृष्ठ सज्जा एवं विवरण लेखनशाला की प्रत्येक गतिविधियों के फोटोग्राफ का विवरण लेखन से लेकर पेज डिज़ाइन का कार्य मैंने ग्राफ़िक्स डिज़ाइनर ami arts raipur के विशेष मार्गदर्शन में पूरा किया।प्रकाशन के लिए वित्त प्रबंधन 

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प्रकाशन के लिए मैंने प्राथमिक व मिडिल स्कूल के सम्माननीय प्रधान पाठकों एवं शिक्षकों, SMC के सदस्यो तथा सरपंच एवं पंचायत पदाधिकारियों के सहयोग से पूरा किया। इस तरह से मैंने पत्रिका की संकल्पना को पूर्ण करने में अनेक परिस्थितियों को पार करते हुए अंततः सफलता प्राप्त किया।जिसका विमोचन माननीय डॉ. श्री शिव डहरिया जी , मंत्री नगरीय प्रशासन एवं विकास, श्रम विभाग , छत्तीसगढ़ शासन एवं श्री खिलेश देवांगन अध्यक्ष जनपद पंचायत आरंग , के कर कमलों द्वारा 11 जुलाई 2021 को हुआ।विद्यालय के लिए ख़रीदे साउंड सिस्टम
बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए निर्धारित पाठ्यक्रम के साथ – साथ अनेक सह – शैक्षिक गतिविधियाँ जैसे-कि, स-स्वर प्रार्थना, महापुरुषों की जयन्तियां, शिक्षक दिवस बाल दिवस, तथा बाल सभा आदि कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। इसके आलावा पाठ्यवस्तु को रोचक एवं सीखने की क्रिया को सुगम बनाने के लिए ऑनलाइन कार्यक्रम का प्रदर्शन करते हैं। हमारा प्रयास रहता है कि प्रत्येक बच्चा विद्यालय के सभी गतिविधियों में शामिल हों। उपरोक्त कार्यक्रमों के लिए हमें ध्वनि विस्तारक यन्त्र की कमी खलती थी।  मैंने व्यक्तिगत रूप से विशेष रूचि लेकर राशी दान दिया और विद्यालय के सम्माननीय शिक्षकों से आग्रह कर फण्ड एकत्रित किया और सपने को साकार किया।सामाजिक गतिविधितेरा तुझको सौंपता - एक पहल उद्देश्य :->  🔸विद्यार्थियों में सामाजित एवं जिम्मेदार नागरिक गुणों का विकास करना ।.🔹समाज को विद्यालय से जोड़ना।◼️अभिभावक और शिक्षकों के मध्य विश्वास के रिश्ते को मजबूत करना।
बच्चों में चारित्रिक तथा नैतिक विकास पर परिवार का ही नहीं बल्कि समुदाय का भी प्रभाव पड़ता है। समुदाय में समय – समय में मेला – मड़ाई, शादी , जन्मोत्सव, तीज- त्यौहार एवं अन्य उत्सव होते रहता है ।.बच्चे इन सामाजिक कार्यक्रमों के प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से हिस्सा होते हैं , क्योंकि इस तरह के आयोजन उनके आस – पास के परिवेश में ही होता है। जिससे उनमें सहयोग, सहानुभूति, सहनशीलता, समाजसेवा, त्याग जैसे सामाजिक गुणों का विकास होता है। बच्चों में इन्ही सद्गुणों का विकास करने के उद्देश्य से ग्राम पिरदा के वयोवृद्ध श्री अवधराम साहू जी को सम्मानित करने का एक कार्यक्रम के लिए मैने एक  योजना बनाई । अवध राम जी नेअपने जीवन में विद्यालय एवं गाँव में अनेक पेंड लगाये हैं। जो आज विशाल वृक्ष का रूप ले चूके हैं। जिसके शीतल छाया तले बच्चे, शिक्षक और आगंतुक लोग परम सुख और शांति पाते हैं। समाज के लिए उनके विशिष्ट योगदान से प्रेरित होकर मैंने स्वयं पहल करते हुए प्रधान पाठक श्री सेवाराम साहू के साथ योजना बनाया, तथा गणतंत्र दिवस के पावन अवसर पर श्रीफल एवं शाल भेंट कर उन्हें सम्मानित किया और उनका आशीर्वाद प्राप्त किया। कार्यक्रम में शाला विकास समिति के अध्यक्ष श्री दुकालुराम गायकवाड़, उपाध्यक्ष श्री चैतुराम साहू, पंचायत प्रतिनिधि तथा समस्त ग्रामवासी उपस्थित थे।

मेरे द्वारा किया गया नवाचार पहल      नैतिक शिक्षा विद्यालय में पदभार ग्रहण करने के कुछ दिनों तक तो मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था. लेकिन उन दिनों शाला में चावल नहीं होने के कारण लंच में सभी बच्चे भोजन के लिए बस्ता लेकर घर जाते थे. मेरा ध्यान इस तरफ गया कि भोजनोपरांत उन में से लगभग १५ से २५ प्रतिशत बच्चे वापस शाला नहीं आते थे, जिसका सीधा प्रभाव लंच के बाद होने वाले कालखंड के विषयों पर बच्चों के अधिगम पर पड़ता था. और वही बच्चे सीखने में कमजोर थे . कुछ दिनों तक तो ऐसे ही चलता रहा, मैंने बच्चों से पूछा कि वे लंच में बस्ता लेकर घर क्यों जाते है ? तो पता चला की उनके बस्ते से सामान गायब हो जाते हैं. मैंने सभी गुरुजनों से चर्चा कर इसके लिए योजना तैयार किया तथा लंच में बच्चों को बिना बस्ता के घर जाने को कहा, हमने उन्हें बस्ते की सुरक्षा के लिएपूरी तरह से आश्वस्त किया और उनके सामने ही उन कक्षाओं में ताले लगाये ताकि कोई हरकत न कर पाए. जब सभी बच्चे लंच से वापस आते तभी ताला खुलता था. इस तरह से दो चार दिनों में ही बच्चों में अपेछित सकारात्मक प्रतिक्रिया आने शुरू हुई. बसते में से सामान चोरी की प्रवृत्ति को रोकने के लिए मैंने किस्से कहानियों के माध्यम से बच्चों को अच्छा और बुरा पाप – पुण्य को समझाया, क्योंकि हम सभी इस बात को भली भांति जानते हैं की बच्चे कहानी बड़े ही ध्यान से सुनते हैं.

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कहानियों के माध्यम से ही बच्चों को दिया नैतिक शिक्षालंच से जब बच्चे क्लास में आते तो सबसे पहले वे कहानी सुनाने की मांग रखते थे, इसके लिए मैं लंच से वापस आते तक उनके लिए रोज रोचक कहानियों का अध्ययन कर पूरी तैयारी में रहता था. इस तरह  से मैंने बच्चों को नैतिक शिक्षा के द्वारा बच्चों के ही किसी खोये हुए वस्तु जैसे पेन, कॉपी, किताब, यहाँ तक के पैसे आदि को वापस करने की अच्छे आदतों के निर्माण में सफलता प्राप्त किया है. अब कोई भी बच्चे को कोई भी वस्तु मिलता है तो वे ख़ुशी से गदगद होकर शिक्षकों के पास जमा कर देते है. जिसे हमारे द्वारा उस वस्तु को सम्बंधित बच्चे को वापस कर दिया जाता है, और वापस करने वाले बच्चे को प्रार्थना सभा एवं विशेष अवसरों जैसे स्वतंत्रता दिवस, बाल दिवस, या गणतंत्र दिवस इत्यादि में पुरस्कार देकर प्रोत्साहित किया जाता है.
कोरोना काल के शिक्षण व्यवस्था में मेरी भूमिकाकोरोना काल में बच्चों को शिक्षा की धारा से जोड़े रखने के लिए किया गया प्रयास :-🟢ऑनलाइन शिक्षा ( पढाई तुंहर द्वार ) से जोड़ने के लिए गली – गली, द्वार- द्वार जाकर बच्चों एवं पालकों को जागरूक किया। 🟡 पालकों से संपर्क कर , बच्चों को मोबाइल उपलब्ध कराने के लिए निवेदन किया।🔴 जनजागरण एवं मोहल्ला क्लास के लिए ध्वनि विस्तारक यन्त्र की आवश्यकता थी, सो मैंने स्वयं रूचि लेकर मेगाफोन ख़रीदा।🔵 चौंक – चौराहों पर शिविर लगाकर आनलाईन नहीं जुड़ पाने वाले बच्चों की तकनीकी समस्याओं को दूर किया ,  स्पॉट में ही क्लास शेड्यूल बनाकर जुड़ने की प्रक्रिया का प्रशिक्षण दिया।🟣 जिन बच्चों के मोबाईल में बैलेंस नहीं था उनको हॉट स्पॉट से डाटा देकर अपडेट किया।🟡 ऐसे बच्चे जिनके पास दिन में मोबाईल उपलब्धनहीं रहता उनको वाट्स एप्प में ऑडियो , वीडियो, या इमेजेस शेयर करके अध्यापन कार्य से जोड़े रखने का प्रयास किया।🟢 गुगल फॉर्म में प्रश्न डिज़ाइन कर यूनिट टेस्ट लेने का प्रयास किया।करोना काल में शिक्षा व्यवस्था की हमारी कार्य योजना हमारे संकुल के लिए मॉडल बनी । और अधिकांश स्कूलों के शिक्षकों ने हमारी शैली में कार्य किया।

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