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शिक्षा मधुबन(विद्यालय) में माली(शिक्षक) नन्हें पौधे(विद्यार्थी) को खाद-पानी(शिक्षा) दे कर एक सुगंधित,मनमोहक और फलदार वृक्ष(काबिल इंसान) बनाता है।

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गद्यांश 51 डॉ श्याम सुंदर दास

 

डॉ श्याम सुंदर दास का जन्म 1875 ईसवी में हुआ था। अत्यंत प्राचीन काल से ही काशी (वाराणसी) भारत की संस्कृति साधना का केंद्र बिंदु रहा है। संस्कृत साहित्य के विकास की यह प्रमुख साधना भूमि थी और हिंदी साहित्य के विकास में काशी की सरस्वत साधना की प्रमुख भूमिका रही है। हिंदी में के महान साहित्यकारों में प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद आदि यही के वातावरण में विकसित हुए थे। यही श्यामसुंदर दास का जन्म और प्रारंभिक शिक्षा दीक्षा हुई थी। प्रयाग विश्वविद्यालय से बी.ए. की उपाधि प्राप्त कर उन्होंने सेंट्रल हिंदू स्कूल वाराणसी में अंग्रेजी के अध्यापक के रूप में कार्य प्रारंभ किया। यद्यपि ये अंग्रेजी भाषा के कुशल अध्यापक थे, फिर भी इनकी रूचि प्रारंभ से ही हिंदी भाषा और साहित्य सेवा की ओर थी। इस लक्ष्य की पूर्ति के लिए इन्होंने कुछ हिंदी प्रेमी मित्रों के सहयोग से सन 1893 ई. में काशी नागरी प्रचारिणी सभा की स्थापना की। इनकी मृत्यु 1945 ईस्वी में हुई।

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